एक बार कवि कालिदास बाजार में घूमने निकले। एक स्त्री घड़ा और कुछ कटोरियाँ लेकर बैठी थी ग्राहकों के इन्तजार में। कविराज की कौतूहल हुआ कि यह महिला क्या बेचती है ! पास जाकर पूछाः
"बहन ! तुम क्या बेचती हो?"
"मैं पाप बेचती हूँ। मैं लोगों से स्वयं कहती हूँ कि मेरे पास पाप है, मर्जी हो तो ले लो। फिर भी लोग चाहत पूर्वक पाप ले जाते हैं।" महिला ने कुछ अजीब सी बात कही। कालिदास उलझन में पड़ गये। पूछाः
"घड़े में कोई पाप होता है?"
"हाँ... हाँ.. होता है, जरूर होता है। देखो जी, मेरे इस घड़े में आठ पाप भरे हुए हैं- बुद्धिनाश, पागलपन, लड़ाई-झगड़े, बेहोशी, विवेक का नाश, सदगुण का नाश, सुखों का अन्त और नर्क में ले जाने वाले तमाम दुष्कृत्य।"
"अरे बहन ! इतने सारे पाप बताती है तो आखिर है क्या तेरे घड़े में? स्पष्टता से बता तो कुछ समझ में आवे।" कालिदास की उत्सुकता बढ़ रही थी।
वह स्त्री बोलीः 'शराब ! शराब !! शराब!!! यह शराब ही उन सब पापों की जननी है। जो शराब पीता है वह उन आठों पापों का शिकार बनता है।" कालिदास उस महिला की चतुराई पर खुश हो गये।
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