Wednesday, January 25, 2012

नशे से सावधान (तम्बाकू) Tobbaco

भुक्... छुक्....भुक्....छुक्... आवाज़ करती ट्रेन जंगल में से गुज़र रही है। उसके एक डिब्बे में कितने ही नवयुवक, दो चार व्यापारी एक डॉक्टर और इन सबमें निराले लगते श्वेत-वस्त्रधारी एक संत यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने दो-चार लोगों को बीड़ी-सिगरेट पीते देखा कि तुरन्त उन्हें रोकते हुए कहाः
"भाइयो ! आपको शायद खराब लगेगा परन्तु आपके कल्याण की एक बात मैं कहना चाहता हूँ। आप बुरा न मानें। आप ठाठ से धूम्रपान कर रहे हैं परन्तु उससे होने वाली हानि का आपको पता न होगा। अपने संपर्क में आने वाले अनेकों बड़े-बड़े डॉक्टरों से जो कुछ मैंने सुना है, उसके आधार पर तम्बाकू के अवगुणों के सम्बन्ध में आपको कुछ सूचनाएँ देता हूँ। आप ध्यानपूर्वक सुनें और फिर आपकी विवेक-बुद्धि जैसा कहे वैसा करना।"
सादे वस्त्रों में प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले इन महाराज श्री की आकर्षक आवाज सुनकर डिब्बे में बैठे सब का ध्यान उनकी ओर गया। धूम्रपान करने वाले सज्जनों ने बीड़ी-सिगरेट खिड़की से बाहर फैक दी और ध्यानपूर्वक सुनने के लिए तत्पर हो गये। महाराजश्री ने सबकी ओर देखते हुए अमृतवाणी का झरना बहायाः
"अभी-अभी डॉक्टरों ने यह सिद्ध किया है कि प्रतिदिन एक बीड़ी या सिगरेट पीने वाले व्यक्ति की आयु में प्रतिदिन छः मिनट कम हो जाते हैं। दस बीड़ी पीने वाले के जीवन का रोज एक घंटा कम हो जाता है। एक सिगरेट या बीड़ी पीने वाले व्यक्ति के रक्त में बीस मिनट के अन्दर ही तम्बाकू के अन्य दूषणों के साथ टार और निकोटीन नामक कातिल विष मिल जाते हैं। विज्ञान ने सिद्ध करके दिखाया है कि उस व्यक्ति के पास बैठने वाले को भी धुएँ से उतनी ही हानि होती है। नशा करने वाला व्यक्ति रक्त में तो विष मिलाता ही है, साथ ही साथ, पास में बैठे हुए लोगों की आरोग्यता का भी अनजान में सत्यानाश करता है।

                                 तम्बाकू एक मीठा विष है

 
तम्बाकू एक मीठा विष है। जिस प्रकार दीपक के तेल को जलाकर उसका काजल एकत्रित किया जाता है उसी प्रकार अमेरिका के दो प्रोफेसर, ग्रेहम और वाइन्डर ने तम्बाकू जला कर उसके धुएँ की स्याही इक्टठी की। उस तम्बाकू की स्याही को अनेकों स्वस्थ चूहों के शरीर पर लगाया। परिणाम यह हुआ कि कितने चूहे तो तत्काल मर गये। अनेकों चूहों का मरण दो-चार मास बाद हुआ जबकि अन्य अनेकों चूहों को त्वचा का कैंसर हो गया और वे घुट-घुट कर मर गये। जिन चूहों के शरीर पर तम्बाकू की स्याही नहीं लगायी गयी थी और उन्हें उनके साथ रखा गया था उन्हें कोई हानि न हुई। इस प्रयोग से सिद्ध हो गया कि तम्बाकू का धुआँ शरीर के लिए कितना खतरनाक है।
डॉक्टरों का जो बड़े से बड़ा कालेज है रॉयल कालेज उसके डॉक्टरों ने एक निवेदन द्वारा अखिल विश्व डॉक्टरों को चेतावनी दी है कि तम्बाकू से शरीर में कौन-कौन से रोग होते हैं, इसका ध्यान रखें और रोगी को तम्बाकू पीने से रोकें।

तम्बाकू से होने वाले रोग

फेफड़ों में कैंसर

रॉयल कालेज की रिपोर्ट बताती है कि तम्बाकू के कारण अनेकों को फेफड़ों की बीमारी होती है, विशेषकर कैन्सर। फेफड़ों की बीमारी के कारण अपने देश में बड़ी संख्या में मृत्यु होती है। अतः बिल्कुल बीड़ी न पीना ही इसका सबसे सुन्दर इलाज है। ऐसी बीमारी डॉक्टरों के लिए भी एक चुनौती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि फेफड़ों के कैन्सर का मुख्य कारण तम्बाकू है। इसके अतिरिक्त पुरानी खाँसी भी बीड़ी पीने का कारण ही होती है। बड़ी आयु में खाँसी के कारण बड़ी संख्या में मृत्यु होती है और स्वास्थ्य नष्ट होता है। इससे ऐसे लोगों की जिन्दगी दुःखपूर्ण हो जाती है। दमा और हाँफ का मूल खाँसी है जिसके कारण मानव बड़ा परेशान होता है और कठिनाई में पड़ जाता है। क्षय के रोगी के लिए तो बीड़ी बड़ी हानिकारक है। अतः क्षय के रोगियों को तो बीड़ी कभी न पीनी चाहिए। टी.बी. वाले रोगी दवा से अच्छे हो जाते हैं परन्तु तम्बाकू-बीड़ी पीना चालू रखने के कारण उनके फेफड़े इतने कमजोर हो जाते हैं कि उन्हें फेफड़ों का कैन्सर होने का भय निरन्तर बना रहता है।

मुँह और गले का कैन्सर

मुँह का कैन्सर और गले का कैन्सर, ये भी बीड़ी पीने वाले को अधिक मात्रा में होता है। जो व्यक्ति बीड़ी पीता है वह फेफड़ों में पूरी मात्रा में हवा नहीं भर सकता. इससे उसे काम करने में हाँफ चढ़ती है। हवा पूरी तरह न भरने से प्राणवायु पूरा नहीं मिल पाता और इससे रक्त पूरी तरह शुद्ध नहीं हो पाता।
स्कूल और कालेज में देखने में आता है कि होशियार विद्यार्थी तम्बाकू नहीं पीते। तम्बाकू पीने से सहनशक्ति कम हो जाती है और ऐसे व्यक्ति अधिकाँशतः अर्धपागल (Whimsical Neurotic)  होते हैं। तम्बाकू पीने से शरीर को कोई लाभ नहीं। तम्बाकू पीने से आयु कम होती है। तम्बाकू के कारण जितनी अकाल मृत्यु होती है उनका अनुमान लगाना कठिन है। तम्बाकू में हानिकारक जहरीली वस्तुएँ बहुत-सी हैं। उनमें टार और निकोटीन ये दो प्रमुख हैं। 20 मिनट में ये दोनों रक्त में मिलकर शरीर को बहुत हानि पहुँचाते हैं। अग्रगण्य वैज्ञानिकों का यह मानना है कि धूम्रपान से कैंसर होता है। प्रत्येक प्रकार के धूम्रपान में भयंकर जोखिम निहित होता है, जिसका अनुभव हमें तत्काल नहीं अपितु वर्षों बाद होता है। धूम्रपान की समानता गोली भरी बन्दूक से की जा सकती है जिसका घोड़ा दबाते ही नुकसान होता है। धूम्रपान का समय घोड़ा दबाने का काम करता है।
फेफड़ों का कैन्सर दूर करने के लिए उच्च प्रकार की शल्यक्रिया की आवश्यकता पड़ती है। अस्पताल में लाये जाने वाले प्रत्येक तीन रोगियों में से एक रोगी की शल्यक्रिया ही सफल हो पाती है, बाकी के दो अकाल मृत्यु के मुँह में पड़ जाते हैं। इस प्रकार कैन्सर दूर किये व्यक्तियों में से 85 प्रतिशत केवल 5 वर्ष में और अधिकतर लोग दो वर्ष में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। बीसवीं शताब्दी का अति उन्नत विज्ञान भी उन्हें बचाने में असफल रहता है। धूम्रपान न करने वाले को फेफड़ों का कैन्सर होता ही नहीं।
तम्बाकू से निकलते धुएँ से बने कोलटार में लगभग 200 रासायनिक पदार्थ रहते हैं। उनमें से कितने ही पदार्थों से कैन्सर होने की सम्भावना है।
इंगलैंड के डॉक्टर डाल और प्रो. हिल की रिपोर्ट में यह सिद्ध किया गया है कि विश्व विख्यात स्लोन केटरिंग कैन्सर इन्सटीच्यूट के मुख्य नियामक डॉक्टर होड्ज़ भी धूम्रपान और कैन्सर के मध्य प्रगाढ़ सम्बन्ध मानते हैं। बम्बई के इंडियन कैन्सर इन्सटीच्यूट के डायरेक्टर डॉ. खानोलकर भी बीड़ी पीने से कैन्सर होना मानते हैं।
इंगलैंड और अमेरिका की सरकार ने सिगरेट बनाने वाली कम्पनियों के लिये नियम बनाये हैं कि वे अपनी सिगरेट से होने वाली बीमारियों की जानकारी भी प्रजा को अवश्य दें।
भारत सरकार ने भी अब ऐसा नियम बनाया है परन्तु व्यसन में अंधे लोग ये चेतावनी देखकर भी नहीं रुकते और अपने तन और जीवन को नष्ट करते हैं।

हार्ट अटैक

तम्बाकू मात्र फेफड़ों की बीमारी ही लाती है ऐसा नहीं अपितु वह हृदयरोग भी लाती है। यह भी जानने में आया कि बीड़ी पीने वालों को हृदय की बीमारी अधिक मात्रा में होती है। इसीलिए तम्बाकू का उपयोग करनेवालों का अधिकांशतः हार्ट फेल हो जाता है। इसी प्रकार नसों की बीमारियों के लिए भी बीड़ी ही उत्तरदायी है। बीड़ी भूख कम करती है, अतः पाचनशक्ति घट जाती है। परिणामस्वरूप शरीर कंकाल और बहुत ही दुर्बल होता जाता है। किन्तु इसके विपरीत यह भी जानने में आया है कि जो बीड़ी छोड़ देते हैं उनका शरीर पुनः पुष्ट हो जाता है। ओजरी और आँतों के घाव मिटने में तम्बाकू अटकाव करती हैं, अतः घाव तत्काल ठीक नहीं हो पाता।
सामान्यतः हृदय की धड़कनों और उसकी हलचल का विचार नहीं आता परन्तु कितने ही कारणों (जिनमें से एक कारण तम्बाकू भी है) से हृदय की धड़कनें बढ़ती प्रतीत होती हैं जिससे मनुष्य को घबराहट होती है।
हृदय नियमित रूप से संकुचित और प्रसारित होता है परन्तु कितने ही रोगों में रोगी का हृदय अधिक संकुचित हो जाता है अथवा अधिक तेजी से चलने लगता है। ये दोनों रोग तम्बाकू के कारण भी हो सकते हैं जिसमें कभी-कभी हार्ट फेल होने का भय रहता है। इसी प्रकार रक्तवाहिनी नसों की बीमारियाँ भी तम्बाकू के कारण ही होती हैं। रक्तवाहिनियों में रक्तभ्रमण की अनियमितता होती है जिसके कारण थोड़ा सा काम करने से ही हाथ, पैर और सिर दुखने लगते हैं। रक्तवाहिनयों में सूजन होना, इस नाम का दूसरा रोग (Blood clotting) भी होता है जिसमें नसों में लहू जम जाता है और प्रवाह मंद हो जाता है। इसके इलाज के लिए वह अंग ही कटवाना पड़ता है।

पेट के रोग

कितने ही लोग तर्क देते हैं कि बीड़ी न पियें तो पेट में गोला उठने लगता है।
पेट में बल पड़ना (आँतों में गाँठ लग जाना) आदि तम्बाकू के कारण होता है। इस रोग के रोगी को तम्बाकू अधिक पीने से रोग अधिकाधिक बढ़ता है।
जठर की खराबी जिसके कारण अपच होती है, उस रोग का कारण तम्बाकू हो सकता है।
तम्बाकू के व्यसनी को जठर और आँतों के पुराने घाव होने की बहुत संभावना होती है।

अंधापन

एक अन्य ग्रंथ में लिखा है कि अधिक तम्बाकू चबाने से, तम्बाकू पीने से अथवा तम्बाकू के कारखाने में काम करने से कभी-कभी अंधापन भी आ सकता है। आरंभ में दृष्टि कमजोर होती जाती है जिसे चश्मा पहनने से भी सुधारा नहीं जा सकता। इस रोग को अंग्रेजी में (Red green colour blindness) कहते हैं। रोग दोनों आँखों में होता है। इसका सबसे अच्छा इलाज यही है कि तम्बाकू न चबायें, तम्बाकू न पियें और न ही नसवार लें। तम्बाकू के कारखाने में काम न करें। इसके अतिरिक्त और कोई इलाज नहीं है।

काग की सूजन

एक प्रचलित ग्रन्थ कहता है कि गला और काग में सूजन होने के कितने ही कारण हैं, जिसमें से एक कारण तम्बाकू का धुआँ है। कई लोगों के मुँह में लार टपकती है, उसका कारण भी तम्बाकू हो सकता है।

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